मानव और ज्योतिष का संबंध सेंकड़ों बरस पुराना है। ज्योतिष शास्त्र का विकास मानव के साथ-साथ ही हुआ है। सूर्य और सौरमंडल के ग्रहों की गति का प्रभाव पृथ्वी पर सभी जगह एक समान नही रहता। ग्रहों का चलन एक विशेष स्थिति मे होता है, प्राचीन भारतीय विज्ञान के अनुसार यह सृष्टि नौ प्रकार की तरंगों से उत्पन हुई है। इन नौ तरंगों के आधार पर ही सौरमंडल के ग्रहों की पहचान हुई है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य सहित सात ग्रह है—सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुद्ध, बरहस्पति, शुक्र और शनि। आधुनिक विज्ञान राहु और केतु को ग्रह नही मानता, लेकिन बहुत से ज्योतिषाचार्य इसे ग्रह ही मानते हैं। आज यहाँ बर्हस्पति ग्रह की चर्चा करेंगे।
बर्हस्पति ग्रह को गुरु माना गया है। यह अज्ञान और अंधकार को हटा कर अपने शिष्य को बुद्धि और विवेक प्रधान करता है। बरहस्पति विकास का ग्रह है,बरहस्पति की दशा जब चलती है तो व्यक्ति का चहुंमुखी विकास होता है। बर्हस्पति सभी ग्रहों मे सबसे बड़ा ग्रह है। आकाशीय ग्रहों के समस्त भार का 71 प्रतिशत भार केवल बर्हस्पति ग्रह का है। अन्य सभी ग्रहों को मिला कर जितना आयतन बंता है, बरहस्पति उसका डेढ़ गुना है। इसका आकार इतना बड़ा है कि इसमे 13 पृथवियां समा सकती हैं।बर्हस्पति सूर्य से जितनी ऊर्जा ग्रहण करता है, उस से 1.7 गुना अधिक ऊर्जा वापिस विकिरित कर देता है, जबकि शेष ग्रहों मे केवल व्ही ऊर्जा होती है जो वह सूर्य से प्राप्त करते हैं। संस्कृत मे बरहस्पति को गुरु भी कहते हैं। गुरु कि विशेषता यह होती है कि वह न्यायप्रिय होता है। गुरु के समान ही इसमे गुण समाहित हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बर्हस्पति पीत वर्ण, सतोगुणी, ब्राह्मण वर्ण, ईशान दिशा का स्वामी , गोल आकारवाला, सुंदर रत्नों का स्वामी , बलवान और शुभ ग्रह माना जाता है। यदि इस ग्रह का शुभ प्रभाव है तो जातक चतुर, कोमल, बुद्धिवाला, समझदार होता है। परंतु अशुभ दशा होने पर जातक को हृदय रोग, चर्बी संबंधी रोग हो सकते हैं, वह मंदबुद्धि दांपत्य सुख से वंचित, पुत्र सुख से वंचित, और अनेक रोगों से पीड़ित हो सकता है। प्रत्येक ग्रह किसी न किसी रंग और रत्न का प्रतिनिधित्व करता है। बरहस्पति ग्रह पीले रंग का और पुखराज रत्न का प्रतिनिधित्व करता है। बरहस्पति कि खराब दशा होने पर पुखराज रत्न धरण करने का सुझाव दिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बर्हस्पति ग्रह धनु और मीन राशि के स्वामी हैं। एक राशि मे बर्हस्पति 13 मास तक निवास करता है। यह ग्रह जिस भाव मे विचरण करता है वह भाव उससे पूर्ण तथा प्रभावित रहता है। यदि जातक पर इस का अशुभ प्रभाव है तो प्रतिदिन बरहस्पति स्तोत्र पाठ करना जातक के लिए अति उत्तम होगा। जातक के लिए इस दिन उपवास करना, पीले वस्त्र धरण करना, माथे पर केसर का तिलक लगाना, अति उत्तम होगा। यह ग्रह जातक के लिए अशुभ कब है , इस के कुछ लक्षण है जैसे सिर के बाल उड़ जाना, गले मे माला पहनने कि आदत बन जाना, सोना खो जाना शिक्षा रूक जाना, अपयश मिल जाना। यदि जीवन मे ऐसा कुछ हो रहा है तो समझ लें आप पर इस ग्रह का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इस लिए तुरंत उपाय करना ही उचित है।
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