सकारात्मक सोच की एक रोचक कहानी का काव्य रूप देने का प्रयास।


एक दिन एक मेंढ़क ने सोचा, पेड़ पे मैं चढ़ जाऊँ।
असम्भव कार्य नहीं कोई है, दुनिया को दिखलाऊँ।
उसने साथियो को भी बताई, अपने दिल की बात।
सबने व्यंग्य कसा उस पर, उसे लगा आघात।
पर उत्साह उमंग अटल था, लगा पेड़ पर चढ़ने।
धैर्य और साहस के बल पर, लगा वो आगे बढ़ने।
अन्य सभी लगे चिल्लाने, कभी ना चढ़ पाओगे।
क्यों व्यर्थ की कोशिश करते, गिरकर मर जाओगे।
मगर रुका ना पेड़ पर चढ़कर, मंजिल अपना पाया।
कोई कार्य असम्भव ना है, दुनिया को दिखलाया।
सबने पूछा रोक रहा था, चढ़े भला तू कैसे।
मेंढक बोला धुन सवार था। बहरा हूँ मैं वैसे।
मुझे कभी ना लगा तनिक भी, मुझको डरा रहे हो,
तुम जीतना चिल्लाते लगता, उत्साह बढ़ा रहे हो।
अगर जीत मिलती है भैया, दुनिया कहती वाह।
सच में कहा गया है जग में , जहाँ चाह वहाँ राह।

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