बस अब दुख ओर नही - Bus Ab Dukh Aur Nahi - परम श्रद्धेय पं. जी. डी. वशिष्ठ

राधे-कृष्णा
राधे-कृष्णा 

ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव से मानव जीवन दुष्कर बनकर ही न रह जाय, ऐसा विचार मन में आते ही परम पूजनीय गुरुदेव श्री जीडी वशिष्ठ जी ने मन ही मन संकल्प लिया की मुझसे जितना सम्भव हो सकेगा, मैं ज्योतिष ज्ञान द्वारा मनुष्यों का जीवन सरल और सहज बनाने का प्रयास करूँगा ॥ 

                 परम श्रद्धेय पं. जी. डी. वशिष्ठ

मानव जीवन से संबन्धित अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है भाग्य ओर भाग्य-विधाता। इस सर्वोतम संसार मे परमात्मा के बाद मानव को ही संसार की सर्वोतम कृति माना गया है। मानव चोले के माध्यम से ही ज्ञान कर्म ओर उपासना संभव है। मनुष्य को ही परमात्मा ने बुद्धि का अनमोल उपहार दिया है। मनुष्य के अतिरिक्त सभी योनियाँ भोग योनियाँ है। मानव चोले के अलावा किसी अन्य चोले के लिए अपने भाग्य को समझने का या उस की उन्नति का कोई ज्ञान ओर सामर्थ्य प्राप्त नही है। इस संसार मे जब-जब ईश्वर भी इंसान का रूप धरण कर के आए है ,वह भी जीवन यात्रा करते हुए कर्म-फल ओर ग्रह दशा के प्रभाव से वंचित नही रहे, अर्थात इंसान भी अपनी जीवन यात्रा के दौरान कर्म फल ओर अपने जीवन पर पड़ रहे ग्रह दशा के प्रभाव से वंचित नही रह सकता। ईश्वर जब भी इस धरती पर मानवीय चोले मे आए यही संदेश वे जन-साधारण को देते रहे। प्रत्येक व्यक्ति अपने पूरव जन्म के कर्मों का फल तो भोगता ही है इसके साथ ही वर्तमान जीवन यात्रा मे उसके जीवन मे चल रहे ग्रहो का भी अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

परमात्मा की कर्म-फल व्यवस्था मे जो करणीय काम है वे स्वयं हो रहें है। परमात्मा केवल विशेष उदेश्य के लिए ही अवतार लेकर आए हैं, ओर आगे भी विशेष उदेश्य के लिए ही उनका आगमन होगा। कोई व्यक्ति जन्म से अपाहिज है, कोई निर्धनता से ग्रस्त है। क्या अपाहिज बनाने के लिए या किसी को गरीब बनाने के लिए ईश्वर को खुद आना पड़ा। दूसरी तरफ किसी बच्चे का जन्म होते ही वह अरबों की धन स्ंपति का वारिस हो जाता है क्योंकि उसके बाप-दादा की अरबों की स्ंपति है।यही अरबपति घराने का बच्चा धीरे-धीरे जब बड़ा होने लगता है ओर यौवन -अवस्था मे पहुंचता है उस समय हो सकता है वह बुरी संगति मे पड़ कर माता-पिता के दुख का कारण बन जाये, जहां उस बच्चे को सब भाग्यशाली समझ रहे थे अब उसकी हरकतों से उसे कोसने लगें  बुद्धिजीवी माता-पिता को समझते देर नही लगती की यह उस के जीवन मे चल रहे कुछ ग्रहों का 2-प्रतिकूल प्रभाव है। आज हर बुद्धिजीवी इस बात को मानता है कि ज्योतिष ज्ञान द्वारा ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सकता है।

पं. जी. डी. वशिष्ठ
परम श्रद्धेय पं. जी. डी. वशिष्ठ
ज्योतिष ज्ञान का एक विस्तृत क्षेत्र है। ज्योतिष शब्द कि उतप्ति ज्योत से हुई है।  जिसका अर्थ है प्रकाश। प्रकाश देने वाले पदार्थों को ज्योतिष्क कहा जाता है। सौरमंडल मे असंख्य ज्योतिष्क हैं जैसे सूर्य, चाँद, तारे,आदि। इन ज्योतिष्कों की  स्थिति,गति एवं प्रभाव के विषय मे ज्ञान प्रदान करने वाली विद्या को ज्योतिष कहते हैं ओर जिस पुस्तक मे यह समाहित है वह ज्योतिष-शास्त्र है। इस शास्त्र मे मनुष्य के जीवन मे पड़ रहे ग्रहों के प्रभाव को देखते हुए उस के जीवन के वर्तमान, भूत ओर भविष्य का विश्लेषण किया जा सकता है। सौरमंडल मे विचरण कर रहे ग्रहों का मानव जीवन पर क्षण-प्रतिक्षण प्रभाव रहता है, आधुनिक विज्ञान इसे स्वीकारने लगा है। संसार का प्रत्येक प्राणी नव-ग्रहों की तरंगों के प्रभाव से उत्पन होता है ओर इन्ही तरंगों के प्रभाव से संचालित होता रहता है,यदि ग्रह-तरंगे अनुकूल हैं तो उस व्यक्ति को जीवन मे लाभ, सुख ओर उन्नति प्राप्त होते रहते हैं, जब ग्रह-प्रभाव प्रतिकूल होता है, मनुष्य उस समय कई प्रकार की दिक्कतों से गुजरता रहता है। प्रतिकूल चलने वालों ग्रह-तरंगो की शांति  आवश्यक है। शांति न होने पर मानव-जीवन दुष्कर बन कर रह जाएगा।

ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव से मानव-जीवन दुष्कर बन कर ही न रह जाये, एसा विचार मन मे आते ही परम-पूजनीय गुरुदेव श्री जी.डी. वशिष्ठ ने मन ही मन संकल्प लिया, मुझ से जितना संभव हो सकेगा, मैं ज्योतिष-ज्ञान द्वारा मनुष्यों का जीवन सरल ओर सहज बनाने का प्रयास करूँगा। लाल-किताब से संबन्धित ज्योतिष-ज्ञान अर्जित कर जन-कल्याण करना, गुरुदेव के जीवन का एक मात्र उदेश्य है। जब किसी सज्जन का दृढ़ संकल्प नेक दिशा मे होता है तो पूरी कायनात उस के साथ हो लेती है। सब ईश्वरीय शक्तियाँ उस सज्जन को उसकी मंजिल तक पहुँचने मे मदद करती हैं।

परोपकार एक बहुत ही शुभ भाव है। परोपकार जैसी शुभ- भावना से ओत-प्रोत हृदय वाले हमारे परम-पूजनीय गुरुदेव जी ने उन दुखी लोगों के दुख दूर करने का बीड़ा उठाया है, जो अपने जीवन की ग्रह दशा के कुप्रभाव से पीड़ित हैं। प्रत्येक धनाढय व्यक्ति के हृदय मे जनकल्याण जैसा भाव आना संभव नही है। अक्सर किसी भी क्षेत्र मे प्राप्त उच्च शिक्षा का लाभ मानव स्वयं 3-लेता है या केवल उस का परिवार। धन-दौलत होने पर भी किसी प्रकार के जनकल्याण के बारे मे न सोच कर केवल अपने या अपने परिवार के बारे मे सोचने के लिए इस दुनिया मे 90 प्रतिशद लोग हैं । यदि किसी सज्जन के हृदय मे किसी भी प्रकार से परोपकार करने का भाव आया है तो यह ईश्वर का संकेत है, शायद ईश्वर ही श्रेष्ठ आत्माओं का चयन करते हैं कि कौन सी श्रेष्ठ आत्मा, मानवीय चोला पहन कर परोपकार जैसे शुभ भाव का वाहन कर सकेगी। अर्थात ईश्वरीय सता से बाहर कुछ नही।

परम पूजनीय गुरु देव श्री जी. डी. वशिष्ठ आज किसी परिचय  के मोहताज नही। लाल-किताब से सबंधित प्राचीनतम तथा परंपरागत गूढ ज्ञान का निरंतर अनुसंधान करते हुए जन सामान्य के लिए उसे सहज ओर उपयोगी बना देना ही गुरुजी के जीवन का उद्देश्य है। कठोर साधना ओर स्वाध्याय के पश्चात, प्राप्त अलौकिक ज्योतिष-ज्ञान को विशुद्ध रूप मे अपने प्रयोग मे लाकर, गुरुदेव जनकल्याण के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। यह इंसान भाग्य-विधाता तो नही हैं पर आप के दुर्भाग्य को उस दिशा मे मोड़ देने मे सक्षम हैं जहां आप को सकून मिलेगा।

सामान्य मानव जिन सदगुणो, सुलक्षणों ओर महान  कर्तव्यों को धारण करना कठिन समझते हैं उन्ही सब को यह महान पुरुष अपने जीवन मे सहज धारण कर लेते हैं। परंपूजनीय गुरुदेव अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा, ज्योतिष-ज्ञान द्वारा जनहित जैसे कार्य करते हुए पूरे विश्व मे लोकप्रिय हो गये हैं। वे जन-साधारण के लिए महान-पुरुष है।

Yes I can change, ज्योतिष-संस्थान एक ऐसा रास्ता है, जिस पर चल कर लाखों  लोग अपने जीवन मे शांति ओर राहत पा चुके हैं, जो अपने जीवन मे ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण दुख या किसी अन्य प्रकार से दिक्कतें झेल रहे थे। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव से पीड़ित काफी लोग ऐसे हैं जो अज्ञानतावश अपनी पीड़ा का कारण नही जान पाते। वे लोग न केवल अपने जीवन मे निराश हैं बल्कि उन मे आत्मविश्वास की भी बहुत कमी है। ऐसे ही निराश लोगों से गुरुजी सस्नेह कहना चाहते हैं कि अब उन्हे अपने जीवन की उलझी हुई ओर अस्त-व्यस्त परिस्थितियों रूपी धारा के साथ बहने की आवश्यकता नही है, समय  आ गया है अपने को बदलने का, अपनी जीवन-दिशा मोड़ने का।

अंत मे मैं परंपूजनीय गुरुदेव के श्री चरणों मे श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए अपनी शाब्दिक वाणी को विराम देती हूँ। - अल्पना सहगल 

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