एक समय की बात हैए ऋषि कात्यान ने जगदम्बा ललिता का व्रत अनुष्ठान करए उनसे वर माँगा की वह उनकी पुत्री के स्वरुप में जन्म लेए और माँ तथास्तु कह अंतर ध्यान हो गई। कालान्तर मेंए भगवती महाकाली ने सगुण रूप में सती के बाद पार्वती के रूप अवतार लिया । भगवती पार्वतीए माँ आदि शक्ति का शक्ति स्वरुप मानी जाती है। आदि शक्तिए जो की निर्गुण और त्रिदेवों की जननी हैए उन्होंने साकार रूप में जगदम्बा ललिता के रूप में अवतरण लिया और स्वयं को शक्ति स्वरुप अर्थात महाकालीध्पार्वतीए श्री स्वरुप अर्थात महालक्ष्मी और ज्ञान स्वरुप अर्थात महासरस्वती में विभाजन किया । माँ पार्वती ने शिव की कठिन टप कर उनको पति रूप में प्राप्त किया। माना जाता है कि तप करने के बाद माँ पार्वती का रंग काला पद गया। शिव ने पार्वती को काली कह कर सम्बोधित किया। माँ रुष्ट हो कैलाश से चल पड़ी और अरुणाचल प्रदेश के पर्वत श्रृंखला की गुफा में तप करना प्रारम्भ कर दिया।
उसी समय एक महिषासुर नामक एक राक्षश ने ब्रह्मा देव को प्रसन कर उनसे ये वर माँगा की वे केवल स्त्री द्वारा ही मारा जाए। उधर माँ पार्वती ने भी अपनी टप शक्ति से अपनी योग शक्ति की मदद से गंगा जल से अपने तन की कालेपन को धो डाला । माँ पार्वती का रूप सवर्ण की भाँती चमकने लग पड़ा । माँ ने अपने शरीरकोश को ऋषि कात्यान के आश्रम में मिटटी से ढक दिया । उस समय कात्यान की पत्नी गर्भवती थीए और वह वाही वनस्पतियों का सेवन कर रही थी जिस जगह पार्वती माँ ने शरीर कोष छोड़ा था ।
इस वजह से वह कोशिकाएं कात्यान की पत्नी के गर्भ में चली गई और एक तेजस्वी बालिका का जन्म हुआए जिनका नाम कात्यानी रखा। वही दूसरी ओरए महिशसुर ने स्वर्गए पातालए ग्रेहलोक आदि सभी लोको पर अधिपत्य स्थापित कर लिया और पृथ्वी पर स्थित सभी को विष्णुए शिव की भक्ति करने से रोकना शुरू केर दियाए ऐसे में सभी देवता परेशान हो विष्णु और शिव के पास गएए ऐसा देख शिवा और विष्णु ने विचार कर सभी देवताओं से समस्त अग्रेह किया कि यदि हम सभी मिल कर अपनी शक्तियां शुक्र की सन्मुख एकत्रित करेंगे तो वह तेज किसी स्त्री की कोख में अवश्य जाएगा शुक्र के प्रभाव से अवश्य जाएगा। और लक्ष्मी देवी से प्रेरणा पा करए समुन्द्र देव ने कात्यानी को जरकन हीरे का हार पहनाया और वह तेज देवी कात्यानी में चला गया। इसी कारण पार्वती स्वारूप कात्यानी दुर्गा बन गई जिसने महिषासुर का वध कर दिया।
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